बाज़ार
ज़िन्दगी दुकान हो गयी अब तो
जीना बन गया है एक सौदा
अहसास हैं अब कीमत हमारी
समझ है इन्वेस्टमेंट पोटेंशियल हमारा
शिक्षा अब एक नया व्यवसाय है
खेती मृत्यु का नया रास्ता
लेखनी अब बर्बादी है वक़्त की
चित्र हैं अब टाइम पास
बात करना खौफ की भाषा है
दुःख बांटना कमजोरी की निशानी
हँसना एक उधार है
प्यार है आंतरिक कमजोरी
हम सब क्रेता और विक्रेता हैं
ये धरती है एक उभरता बाज़ार
हम सब बिकते हैं यहाँ
जो नहीं बिक पाते वो
निश्चित तौर पर होंगे
कम मार्किट वैल्यू के लोग
इसीलिए मिलते ही पूछता हूँ
क्या है साथी तुम्हारा भाव
शेयर या सट्टा बाज़ार में
इंसान नहीं वस्तु हैं हम,
स्वागत नयी आर्थिक और राजनितिक व्यवस्था
और नयी दुनिया.
1 comment:
very nice Poem
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