एक अध्यापक
मैं एक अध्यापक हूँ
बच्चों को पढाता हूँ
सपनों को बुनना सिखाता हूँ
कभी-कभी तो लगता है
समाज भी बदल डालूं
सब मुझे कहते हैं 'मास्टर'
मेरा पर्यायवाची है ये
कभी पारिश्रमिक के लिए झगड़ता
कभी वाटर केनन को झेलता
मास्टर हूँ मैं
चुनाव करवाता, तो कभी
भेड़ बकरियां गिनता
पोलियो की बूंदें पिलाता
कभी नोकरी के लिए
लखनऊ-जयपुर की सडको पर
अफसरों के चक्कर काटता
ज्ञान उपार्जन करता
नया समाज बनाता
एक अन्धेर् ग्रस्त समाज को
माफ़ करना दोस्तों
अध्यापक नहीं
मास्टर ही हूँ मै।
सुधीर