Saturday, October 4, 2014

वो राजनीती जिसे मैं पढता हूँ

मैं जो पढता हूँ वो राजनीती है
राजनीती है ये, राज करने की नीति
इसमें एक राजा होता है
और बाकि सब राज करने हेतु
और कोई नहीं होता, लोग नहीं होते। 
पर अचरज है मुझे, मैं जिन लोगों को देखता हूँ
उनमें भी, बिन राजनीति जाने
एक सोच होती है , मानवता होती है
और साथ ही होती है ,
दुनिया को देखने की एक नज़र
वो नजर जो दुनिया से आगे हो
जिसमे न्याय है, और स्वतंत्रता भी
जिसमे हक़ है और समरसता भी
जिसमे शोषण है पर मिलनसारिता भी
जिसमे युद्ध है और शांति भी.   
पर मैं जो लोकतंत्र पढता हूँ
वो तो कुछ और है , उसमे लोग है,
पर लड़ते हुए
अपने हक़ के लिए, न्याय के लिए
शांति के लिए, समानता के लिए
सब लड़ते हुए, एकदम व्यस्त
बात करने और रुकने की फुर्सत नहीं
मैं सोचता हूँ, क्या पढता हूँ मैं
एक सच या फिर एक झूठ
या फिर कुछ कहीं दोनों के बीच। 
कहीं मेरे ये शब्द - राजनीती और लोकतंत्र
गलत तो नहीं ,
कहीं कुछ और तो नहीं बसता
जहाँ न राज करने की नीति हो
न ही लोकतंत्र के संघर्ष
पर फिर भी लोग हो
बातें हो , बाँटना हो, साथ रहना हो
झगडे हों, पर शांति भी हो
मोहब्बत भी हो संगीत भी
मैं कहीं कुछ गलत तो
नहीं पढ़ रहा हुँ.

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